मुहब्बत
आजकल की मुहब्बत कितनी कमज़र्फ है, ये बदले में मुहब्बत चाहती है, न मिले तो रुसवाइयों को अपनी बैसाखी बना कर उसके सहारे चलने की कोशिश करने लगती है। मेरे लिए मुहब्बत हमेशा ही, सुकून का मसला रहा है, जहां बदले में मुहब्बत की तलब तो रही पर ज़बर्दस्ती उसकी चाहत कभी नहीं रही, हाँ ऐसा ज़रूर हुआ कि सोचा काश... लेकिन उस काश को अपना मुस्तक़बिल नहीं बनाया उस लम्हे को गुज़रने दिया, ठीक वैसे ही जैसे वो गुज़र रही थी, यही वजह है आज मेरे हिस्से में मुस्कुराती यादों का अपना एक ज़खीरा है। हम अक्सर दूसरों से मुहब्बत कर बैठते है, करना भी चाहिए लेकिन ठीक उसी जगह अगर वो मुहब्बत हमें वापस नहीं मिलती है, हम उस वक़्त में खुद से मुहब्बत करना छोड़ कर मुहब्बत पाने की काशमोकश में खुद से नफ़रत करने लग जाते हैं। ठीक इसी वक़्त हम मुहब्बत के नाम पर मुहब्बत को रुस्वा कर रहे होते है। इफ और बट या परसेप्शन के साथ मुहब्बत नहीं होती है, जब होती है पूरी तरह से साफ़ होती है, मुहब्बत का अनुमान मत लगाइये, अगर मुहब्बत के बदले में मुहब्बत नहीं मिल रही, आप की मुहब्बत तो है न! क्या आपको खुद के अहसास के लिए सामने वाले के अहसास की ज़रूरत पड़ती है, आप...