इस्लाम का हुक्म ग़ैर मज़हब से दोस्ती को लेकर
बहुत से लोग सूरह मायदा की यहूदियों और ईसाई लोगों से मित्रता न करने सम्बन्धी आयतें और बहुदेववादी लोगों से मित्रता न करने के आदेश सम्बन्धी आयत को दिखाकर पूछते हैं कि पवित्र कुरान मे मुस्लिमों को गैर मुस्लिमों से दोस्ती न करने का आदेश देकर शत्रुता का पाठ पढ़ाया गया है ......लेकिन ऐसा नहीं है
सौचिए अगर यहूद ओ नसारा से मुस्लिमों की सिर्फ दुश्मनी है तो इस्लाम मे यहूद ओ नसारा औरतों से शादी हलाल और शादी के बाद भी उन औरतों को अपने धर्म का पालन करते रहने की, और उन्हें अपने माएके वालों से मधुर सम्बन्ध बनाए रखने की आजादी क्यों है .... क्या दुश्मनों से शादी कर के कहीं उनसे खानदानी रिश्ते भी बनाए जाते हैं ???
यहूदियों और ईसाईयो से मित्रता के निषेध की आयत तो देख ली आप ने पर मैं आपको बताऊं कि मुस्लिम कुरान मे केवल ये एक दो आयतें पढ़कर ही फैसला नही करने लगते, बल्कि मुस्लिम सम्पूर्ण कुरान पढ़कर, व हर आयत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देखकर ही कुरान पाक की किसी शिक्षा को अमल मे लाते हैं .... और सम्पूर्ण कुरान पाक समस्त मानवजाति के लिए दयालुता है , ये बात पवित्र कुरान से परिचित हर व्यक्ति जानता है ...
सूरह मायदा की आयत 82 और 83 पढ़िए ईसाई मित्रता के लिए सबसे निकट मिलेंगे मुसलमानों को .... यहूदी बेशक अधिकतर दुश्मन हैं मुस्लिमों के.. पर नेक यहूदियों पर मेहरबान होने की बात भी अल्लाह ने सूरह मायदा की आयत 69 मे, और सूरह बकरह की आयत 62 मे की है ....
यानि कुरान मे यदि बहुदेववादी और ईसाई व यहूदियों से मित्रता न करने का आदेश भी है, तो वहीं इनसे मित्रवत सम्बन्ध रखने की अनुमति भी .... तो इन दो विपरीत बातों का क्या रहस्य है ....??
मुझे ही बताना पड़ेगा कि कुरान मे किस विधर्मी से मित्रता करना है और किस से नहीं इस बात का क्या मापदंड है
"अल्लाह तुम्हें इससे नहीं रोकता कि तुम उन लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करो और उनके साथ न्याय करो, जिन्होंने तुमसे धर्म के मामले में युद्ध नहीं किया और न तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला। निस्संदेह अल्लाह न्याय करनेवालों को पसन्द करता है अल्लाह तो तुम्हें केवल उन लोगों से मित्रता करने से रोकता है जिन्होंने धर्म के मामले में तुमसे युद्ध किया और तुम्हें तुम्हारे अपने घरों से निकाला और तुम्हारे निकाले जाने के सम्बन्ध में सहायता की। जो लोग उनसे मित्रता करें वही ज़ालिम है।" [सूरह मुम्ताहना; 60, आयत 8-9]
इतनी खुली हुई और स्वाभाविक सी बात है ऐसे दुष्ट व्यक्ति चाहे विधर्मी हों या स्वधर्मी, दोस्ती उनमें से किसी से भी नही की जा सकती, यही है हमारी पवित्र पुस्तक का दिशा निर्देश ... और देखिए ...
"ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं।"
[सूरह आले इमरान, आयत 118]
देखिए यहाँ तो एक लाज़िमी सी तालीम दी गई है, आयत के ही शब्दों मे कि "जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है ..." तो ऐसे लोग जो हमें मुसीबत मे डालकर खुश होते हों ... हमें गालियां देते हों, धमकियां देते हों .. उनसे भला कोई दोस्ती कर कैसे सकता है ...
अब क्योंकि इस आयत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि मे जिन लोगों से दूर रहने की बात कही गई थी वो अरब के वे मूर्तिपूजक थे जो अपने दासों और निर्धन लोगों को उनके इस्लाम कुबूल कर लेने के कारण भयंकर प्राणघातक यातनाएँ देते रहे थे और कुछ नवमुस्लिमो की हत्या भी कर चुके थे, तो अनेक गैर मुस्लिम भाई बहन ये समझ बैठे कि कुरान मे अल्लाह ने मुस्लिमों को गैर मुस्लिमों या मूर्तिपूजक लोगों से ही मित्रता करने पर प्रतिबंध लगा दिया है ...
परंतु हमारे भाई लोग ये बात क्यों भूल जाते हैं कि यदि तमाम विधर्मियों से मित्रता करने पर इस्लाम मे प्रतिबंध लगा दिया गया होता तो सबसे पहले नबी स. अपने चाचा हजरत अबू तालिब से सम्बन्ध तोड़ते क्योंकि नबी स. के ये चाचा कभी मुस्लिम नहीं बने और अपने मूर्तिपूजक धर्म पर ही रहे थे ... लेकिन वे नबी स. के लिए बहुत सम्माननीय और सबसे अच्छे मित्र रहे थे .......
यदि इस्लाम गैर मुस्लिमों से मित्रता निषेध कर के उनसे विरक्तता का ही आदेश देता तो मक्का विजय के बाद नबी स. मक्का के लगभग सभी अपराधी गैरमुस्लिमो के अपराध क्षमा न कर देते ...
और वर्तमान समय मे ही देख लीजिए, चाहे कितना भी मजहबी मुस्लिम आप देख लीजिए वो कभी भी गैर मुस्लिमों से कटकर नहीं रहता .... आप सब को अनेकों मुस्लिमों ने अपना दोस्त बना रखा है। आप क्या सोचते हैं कि वो सारे मुस्लिम अपनी धार्मिक पुस्तक का अपमान करते हैं ???
सोच कर देखिए ....!!
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