दस सवाल
"इन दस सवालों को सुनते ही भाग जाता है हर मुसलमान" नाम की एक पोस्ट महीनों से नेट पर भटक रही है, कई महीनों पहले एक भाई ने इसका जवाब मांगा था तो मैंने उन्हें इनबॉक्स कर दिया था... आज फिर ये पोस्ट सामने आई है तो सोचता हूँ, जवाब की पोस्ट बना दूँ ताकि ढूंढने में आसानी रहे, दस सवाल शार्ट में ये हैं-
1-क़ुरान में ख़तना नही तो मुस्लिम ख़तना क्यों करवाते हैं
2-क़ुरान की पहली लिखित प्रति जो आसमान से उतरी थी वो कहाँ है
3-3 दिन का बच्चा मर जाए तो जन्नत में जाएगा या दोज़ख़ में
4-जन्नत में पुरुषों को 72 हूर मिलेंगी तो औरतों को क्या मिलेगा, अबोध बच्चे मर गए हों उन्हें क्या मिलेगा
5-अगर गैरमुस्लिम मिलकर मुस्लिमों से युद्ध करें तो जिहाद को पुण्य मानने वाले मुस्लिम इस युद्ध को पुण्य मानेंगे या पाप
6-क्या नेक काफिर भी मरने के बाद जहन्नुम में झोंक दिया जाएगा, क्या ये अन्याय नही होगा ?
7-नबी सल्ल० सशरीर जन्नत गए थे, उन्होंने निराकार अल्लाह को कैसे देखा और कैसे पहचाना कि ये अल्लाह ही है कोई दुष्ट जिन्न नही ?
8-नबी सल्ल० ने यरोशलम की मस्जिद में नमाज़ कैसे पढ़ी जबकि उनके समय में मस्जिद रोमनों द्वारा नष्ट की जा चुकी थी ?
9-अल्लाह ने नबी सल्ल० जो कि अनपढ़ थे, उनमे क्या विशेषता देखी जो किसी अन्य की बजाय उन्हें नबी बनाया, और अल्लाह 63 वर्षों में भी नबी सल्ल० को पढ़ने की शक्ति क्यों नहीं दे सका ?
10- जो इंसान विधर्मियों पर आक्रमण कर के लूट का माल रख ले उसे अल्लाह का रसूल क्यों मानें ??
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जवाब
1- ख़तना इस्लाम में अनिवार्य नही है, बल्कि सुन्नत है, और बिना ख़तना करवाये भी कोई व्यक्ति मुस्लिम हो सकता है.... मुस्लिम अपने बच्चों का ख़तना क़ुरान के आदेश की बजाए, इसके सुन्नत यानि पुण्य का काम होने की वजह से कराते हैं, और क्योंकि क़ुरान में ख़तना न करवाने सम्बन्धी कोई आदेश नही है, इसलिये ख़तना करवाना अल्लाह के आदेश का उल्लंघन बिलकुल नही है
2- ये दावा मुस्लिमों ने कब किया कि जिब्रील अ०स० ने नबी सल्ल० को कोई लिखित सूरह दी थी, प्रमाण दिखाइए ? जिब्रील अ०स० ने नबी सल्ल० को पहली और उसके बाद हर बार में भी क़ुरान की सूरतें कंठस्थ कराई थीं न कि किसी कागज़ पर लिख कर दी थीं
3- अबोध बच्चा मर जाए तो जन्नत में ही जाएगा सभी मुस्लिम विद्वान इस बात पर सहमत हैं क्योंकि वो बच्चा उस आयु को नही पहुंचा था जब वो पाप कर सकता (सही मुस्लिम की हदीस की व्याख्या, 16/207
4- 72 हूरों का ज़िक्र क़ुरान में कहीं भी नही है, बल्कि ये बात है कि नेक व्यक्तिओं जिनकी मौत विवाह से पहले हो गई थी जन्नत में उनका विवाह जन्नती स्त्रियों से करवा दिया जाएगा, जिन नेक व्यक्तियों के विवाह हो गए थे, तो उन प्रेमी पति पत्नियों को जन्नत में एक दूसरे से मिला दिया जाएगा, तो देखिये विवाहिता स्त्रियों को तो हूरा के रूप में उनके सांसारिक जीवन के पति मिल ही जाएंगे, रही कुँवारेपन में देह त्याग कर चुकी नेक लड़कियां तो उनके विवाह भी जन्नती पुरुषों से कर दिए जाएंगे... क्योंकि क़ुरान में वर्णित शब्द हूर का अर्थ है सुन्दर आँखों वाला साथी, हूर शब्द का कोई स्पेसिफिक जेंडर नही है, पुरुषों के परिप्रेक्ष्य में हूर शब्द स्त्रियों के लिए प्रयुक्त होगा और स्त्रियों के परिप्रेक्ष्य में हूर शब्द पुरुषों के लिए प्रयुक्त होगा
जो बच्चा जन्मते ही मर जाए, क्योंकि उसके खाते में कोई पुण्य भी नही है अतः कई विद्वानों का मानना है कि ये बच्चे जन्नत में 10-12 वर्ष की अवस्था में बनकर रहेंगे और जन्नत के लोगों की सेवा किया करेंगे
5- मुस्लिमों के विरुद्ध संगठित होकर किये जाने वाले युद्ध को हम पाप या पुण्य क्या मानेंगे इसका जवाब देने से पहले हम ये पूछना चाहते हैं कि ये गैर मुस्लिम मुस्लिमों पर आक्रमण करेंगे क्यों ?? मुस्लिम तो पुण्य मानकर किसी से युद्ध नही करते, मुस्लिमों को इस्लाम ने युद्ध की अनुमति केवल आत्मरक्षा में दी है कुरान मे कहीं भी मुस्लिमों को खुद किसी युद्ध को शुरू करने की पहल करने की शिक्षा नहीं दी गई है , लेकिन जब शत्रु खुद बार बार मुस्लिमों पर आक्रमण करने आए तो आत्मरक्षा के लिए मुस्लिमों को तलवार उठाने की अनुमति दी गई, पवित्र कुरान मे ये बात स्पष्ट तौर पर लिखी है
‘‘और जो लोग तुमसे लड़ते हैं, तुम भी खुदा की राह मे उनसे लड़ो, मगर ज्यादती (अत्याचार) न करना कि खुदा ज्यादती करनेवालो को दोस्त नही रखता।’’
(कुरआन, सूरा-2, आयत-190)
इस्लाम मे कही भी निर्दोषों से लड़ने की इजाजत नही हैं, भले ही वे काफिर या मुशरिक या दिल मे मुस्लिमों से दुश्मनी रखने वाले ही क्यो न हों, ॥ कुरान की सूरह मुम्ताहना की आठवीं आयत मे लिखा है कि जिन लोगों ने तुम मुस्लिमों से तुम्हारे धर्म के कारण जंग नही की और न तुम को तुम्हारे घरो से निकाला, उनके साथ भलाई और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नही करता। खुदा तो इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता हैं।
6- जिस गैर मुस्लिम तक इस्लाम का संदेश सही प्रकार न पहुंचा हो (यानि उसने कभी इस्लाम का संदेश ठुकराया न हो, बल्कि वो अपने जीवन में कभी किसी मुस्लिम से मिला ही न हो, और इस्लाम के बारे में उसने कभी जाना ही न हो) उसके जन्नत में जाने की एक सम्भावना है इस विश्वास की बुनियाद अल-अस्वद बिन सरीअ़ की एक हदीस है जिसमे उन लोगों का जिक्र है जिन तक किसी रसूल का संदेश उनके जीवन मे नहीं पहुंच पाया था, तो अल्लाह तआला कयामत के समय इन लोगों की एक परीक्षा लेगा, और जो व्यक्ति उस समय भी अल्लाह के आगे हठधर्मी दिखाकर अल्लाह की आज्ञा नहीं मानेगा वो नरक मे जाएगा, और जो गैरमुस्लिम व्यक्ति उस समय अल्लाह की आज्ञा मान लेगा वो जन्नत मे भेज दिया जाएगा ....
इसे इमाम अहमद और इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है, और अल्बानी ने सहीहुल जामिअ़ हदीस संख्या : 881 के अंतर्गत सहीह कहा है।
7- हदीस के अनुसार नबी सल्ल० ने अल्लाह से बात की थी परंतु बुख़ारी शरीफ में हज़रत आयशा रज़ि० से रिवायत हदीस के अनुसार नबी सल्ल० ने अल्लाह को देखा नही था...... हैरत है कि पवित्र क़ुरान का ज्ञानी होने का दावा करने वाला व्यक्ति ये प्रश्न कर रहा है कि सातवें आसमान पर पहुँच कर नबी सल्ल० को कैसे विश्वास हुआ कि वो अल्लाह से ही बातें कर रहे हैं, किसी जिन्न या शैतान से नही ... क्योंकि पवित्र क़ुरान में स्पष्टतः लिखा हुआ है कि जिन्न एवं शैतानों की पहुँच दुनिया के आकाश से नीचे तक ही है, इसके ऊपर वो कभी जा ही नही सकते
"हमने आकाश मे बुर्ज (तारा समूह) बनाए, और देखने वालों के लिए उसे सुसज्जित किया, और हर फिटकारे हुए शैतान से उसे सुरक्षित रखा, ये बात और है कि किसी ने चोरी छिपे उसकी कुछ सुन गुन ले ली तो फिर एक प्रत्यक्ष अग्निशिखा ने भी उसका पीछा किया ।" [ पवित्र कुरान 15:16-18]
( यही सब कुरान 7:6-10 मे भी लिखा हुआ है )
और सूरह जिन्न 72:8 मे लिखा है कि "(जिन्नात ने कहा) और ये कि हमने आकाश को टटोला तो उसे सख्त पहरेदारों और उल्काओं से भरा हुआ पाया" ....
8- नबी सल्ल० के समय में मस्जिदे अक़्सा खंडहर के रूप में मौजूद थी, नबी सल्ल० ने इसी खंडहर में नमाज़ पढ़ी थी.... अगली सुबह जब नबी सल्ल० ने रात का वृतांत लोगों को बताया और जैसा कि सही बुखारी , वॉल्यूम 5, किताब 58, हदीस 226 मे लिखा है, आप सल्ल. ने लोगों को बैतुल मुकद्दस का नक्शा बताना शुरू कर दिया जैसा कि उन्होंने रात मे बैतुल मुकद्दस को देखा था ,
इसके अतिरिक्त आप सल्ल. ने कीकर के उस अभिशप्त पेड़ के बारे मे भी बताया जिसका कुरान मे जिक्र है और जिसे आप सल्ल. ने बैतुल मुकद्दस के रास्ते मे देखा था
तब वे लोग जो पहले कभी बैतुल मुकद्दस देख आए थे , नबी सल्ल. के बताए बैतुल मुकद्दस के वर्णन को एकदम सटीक पाकर उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि नबी सल्ल. रात ही रात मे येरूशलम जा आए हैं, क्योंकि इस से पहले नबी करीम कभी येरूशलम नही गए थे , और मस्जिद को बगैर देखे उस की यथास्थिति को इतनी सटीक तौर पर जानना किसी के लिए भी असम्भव ही था !! उस समय नबी सल्ल० के बड़े से बड़े विरोधी भी आप सल्ल० की बात को झूठा साबित नही कर पाए थे... तो फिर आज प्रश्न पूछने वाले क्या खाकर नबी सल्ल० पर आरोप लगाएंगे
9- नबी सल्ल० अनपढ़ व्यक्ति थे, इसके बावजूद उन्होंने ज्ञान का सागर क़ुरान कह सुनाया, ये अल्लाह का एक चमत्कार है, और सोचने की बात है कि उनके ज्ञान का स्रोत किसी दैवीय शक्ति के अलावा क्या हो सकता है.... अच्छा, यइ भी बता दूं कि नबी सल्ल० अपने समाज में सबसे अच्छी आदतों वाले व्यक्ति के तौर पर प्रसिद्ध थे, और सबसे पसंदीदा व्यक्ति थे ... पर जब नबी सल्ल० ने लोगों को एक ईश्वर की इबादत करने की शिक्षा दी, दासों के साथ रहम का व्यवहार अपनाने को कहा, नवजात बच्चियों की जान लेने से रोका, स्त्रियों को अपमानित करने से रोका तो तमाम दुष्ट बुद्धि के लोग आप सल्ल० के दुश्मन बन गए और नबी सल्ल० को देखकर ताने मारने लगे कि अल्लाह को मोहम्मद सल्ल. के सिवा कोई और आदमी न मिला था नबी बनाने के लिए.... हालाँकि ये उन व्यक्तियों का बुराई से प्रेम बोलता था, क्योंकि नबी सल्ल० नबी बनने के लिये एकदम उपयुक्त व्यक्ति थे, लेकिन जो लोग स्त्रियों के शरीर से खेलने की आज़ादी चाहते थे,नवजात बच्चियों की हत्या की आज़ादी चाहते थे, याज़द लोगों को दास बनाकर उनके साथ बुरा व्यवहार करना चाहते थे, वे नबी सल्ल० में कमियां निकालने के प्रयास करने लगे ताकि नबी सल्ल० का उनका विरोध करना तार्किक लगे, ऐसे ही दुष्ट बुद्धि आज भी हैं जो पूछते हैं कि अल्लाह को मोहम्मद सल्ल. के सिवा कोई और आदमी न मिला था नबी बनाने के लिए ?
10- प्रश्न नम्बर 5 के उत्तर में बता चुका हूँ कि युद्ध केवल उनसे किया जाता था, जो मुस्लिमों पर मुस्लिमों का नामो निशान मिटाने, और मुस्लिमों का धन और स्त्रियों और बच्चों को लूटने के लिए चढ़ाई करते थे, ऐसे दुष्ट व्यक्ति जो मुस्लिमों को लूटने मारने की चाहत में मुस्लिमों पर हमला करते हों, उनसे आत्मरक्षा में लड़ कर यदि मुस्लिम जीत जाएँ, और जीतकर युद्ध में मिली सामग्री को अपने पास रख लें तो किसी को पीड़ा नही होनी चाहिए सिवाय उन क्रूर हत्यारों बलात्कारियों के समर्थकों के
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