रिश्तेदारी में शादी करने का जवाब
मुस्लिमों द्वारा अपने चाचा, मामा, बुआ की बेटियों से विवाह करने की प्रथा पर हमारे कुछ गैर मुस्लिम भाईयों का बड़ी घृणा के साथ कहना है कि मुस्लिम अपनी ही बहनों के ही भाई नहीं होते, और मुस्लिमों की गन्दी नज़र ने उनकी अपनी बहनें ही नहीं बच पातीं ........
भाईयों आपका ये कटाक्ष सर आंखो पर लेते हुए मैं ये कहना चाहता हूँ कि मुस्लिमों को सिर्फ अपनी बहनों का ही नही बल्कि इसकी, उसकी, आपकी, मेरी सभी की बहनों का भाई बनने का, यानि संसार की सारी लड़कियों का भाई बनने का आदेश दिया गया है, चाहे वो लड़कियां किसी भी धर्म, जाति समुदाय की हों, उनके मान-सम्मान उनके सतीत्व और उनके जीवन की रक्षा हमें ठीक उसी प्रकार करनी है, जैसे एक भाई अपनी बहन की रक्षा करता है ...!!!!
अब भाई, रहा सवाल इस बात का कि जो मुस्लिम अपनी ही चचेरी, ममेरी, फुफेरी और मौसेरी बहनों से विवाह करते हैं, ये उचित है या अनुचित, सराहनीय कार्य है या घृणास्पद ?
तो इस बारे मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि क्योंकि ऐसे विवाह की हर धर्म मे अनुमति है, तो आप चाहे जिस भी धर्म को उचित मानें, ये विवाह भी आपको उचित ही मानना होगा .....
ऐसे विवाह की विशेषता ये है कि क्योंकि वधू, वर पक्ष के किसी अपने ही प्रिय सम्बन्धी की ही बेटी होती है, इसलिए दहेज प्रताड़ना, दहेज हत्या की संभावना शून्य, और वधू के मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न की संभावना बिलकुल क्षीण रहती है ... पति को अपने ससुराल पक्ष का इस कारण और लिहाज़ रहता है, कि वो पहले से उनके रिश्तेदार हैं, इसलिए अकारण वो पत्नी को त्यागने आदि से खुद को रोकता है...
फिर ऐसे विवाह मे विशेषकर लड़की के विवाह मे आसानी रहती है, लड़की यदि गुणवती है तो उसके गुणों से मुग्ध हो कर, और यदि गुणवती नहीं भी है तो भी उसके परिवार से प्रेम के कारण खानदान से ही लड़की के रिश्ते आ जाते हैं, क्योंकि लड़की को देखने वाला उसका भावी ससुराल पक्ष उसके घर मे सदा से ही आता जाता रहा है
पति पत्नी या उनके परिवारों के आपस मे व्यवहार न मिल पाने के कारण विवाह के टूटने का भय भी इस विवाह मे न्यून है क्योंकि दोनों परिवार वर वधू के जन्म से भी पहले से एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं, और एक दूसरे के व्यवहार को वर्षों अच्छी तरह परखने, और विवाह के लिए वर वधू की सहमति के बाद ही आपस मे ये नया सम्बन्ध जोड़ते हैं .... और सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि करीबी सम्बन्धियों मे विवाह की प्रथा से लड़के लड़कियों के विवाह मे देरी की नौबत नही आती, जिससे नई पीढ़ी मे भटकाव की समस्या भी नही आने पाती, जबकि अन्य परिवारों मे रिश्ता ढूंढने और पसंद करने मे कई वर्ष लग जाते हैं, इसके बाद भी विवाह के सफल न होने का डर अलग ...!! इन्हीं सारे कारणों से मैं तो करीबी रिश्तेदारियों मे विवाह की प्रथा को एक सराहनीय कार्य मानता हूँ ...!!
संभवत: इसी कारण हर धर्म ने इस विवाह की अनुशंसा की है, महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा उनके सगे मामा और सगी बुआ की बेटी थीं, और स्वयं श्रीकृष्ण जी ऐसे विवाह के पक्ष मे थे . कृष्ण जी ने अपनी बहन सुभद्रा का विवाह अपनी सगी बुआ के पुत्र अर्जुन से करवाया था ! अर्जुन सुभद्रा के सगे फुफेरे भाई थे, और सुभद्रा अर्जुन की सगी ममेरी बहन थीं, नीचे लिखे प्रमाणों से ये बात भली प्रकार सिद्ध होती है :-
1- वसुदेव एक यदुवंशी जिनके पिता का नाम शूर और माता का नाम मारिषा था।
*. ये मथुरा के राजा उग्रसेन के मन्त्री थे। पांडवों की माता कुंती वसुदेव की सगी बहन थी ।
http://bharatdiscovery.org/india/वसुदेव
2- पृथा (कुंती) महाराज शूरसेन की बेटी और वसुदेव की बहन थीं। शूरसेन के ममेरे भाई कुंतिभोज ने पृथा को माँगकर अपने यहाँ रखा। इससे उनका नाम 'कुंती' पड़ गया, कुंती भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं। कुन्ती को इन्द्र के अंश से अर्जुन का जन्म हुआ।
http://bharatdiscovery.org/india/कुन्ती
3- सुभद्रा कृष्ण की बहिन जो वसुदेव की कन्या और अर्जुन की पत्नी थीं। इनके बड़े भाई बलराम इनका ब्याह दुर्योधन से करना चाहते थे पर कृष्ण के प्रोत्साहन से अर्जुन इन्हें द्वारका से भगा लाए। सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु , महाभारत के प्रसिद्ध योद्धा हैं।
http://bharatdiscovery.org/india/सुभद्रा
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