आज इस्लामी मुल्क जंग के मैदान क्यों बने हुए हैं?

अफसोस "हलब" उम्मत के मजबूत हुक्मरां सिर्फ और सिर्फ हुक़ूमत के लिए बने । कौम से ज्यादा फ़िक्र उन्हें अपने हूकूमत की है और उन सलिबियो , यहूदियों , और ज़ालिमों की जी हज़ूरी की पड़ी है ।
   
    ऐ परवरदीगर उम्मत को एक सलाउद्दीन मर्दे मोजाहिद  की जरूरत है । हाय अफसोस "हलब"  हमारे बस में सिर्फ दुआएं बची है ।

#Aleppo
#PrayForAleppo #StandWithAleppo #SaveAleppo

📖 म्यांमार और सीरिया मे आज कल मुसलमानो के साथ जो हो रहा वोह कोई नई बात नही है यही हाल 1492 मे मुसलमानो के साथ ग़रनाता(स्पेन) मे हो चुका है और उस वक़त भी उम्मते मुसलमां का वही हाल था जो आज के मुसलमानो का है. ताक़त होने के बावजुद मज़लुमो के हक़ के लिए नही लड़े नही पर उन लोगों को उनके मुल्क से निकाल कर अपने मुल्क मे ला कर बसा दिया था और ये आज भी हो रहा है, सीरीया , म्यांमार के लोगो को कई जगह बसाया गया

🚥 असल मे दुसरी जगह ला कर बसा देने का क़िस्सा कुछ इस तरह है ⚓

15वीं सदी के आख़िर मे हस्पानीया(स्पेन) मे मुसलमानो का आख़री क़िला ग़रनाता(ग्रेनेडा) ढह गया जिसके बाद वहां 750 सालो से चली आ रही मुसलमानो की हुकुमत का ख़ात्मा हो गया और इसाईयो का उरुज हुआ, और याद रहे फिर इसके बाद 1492 मे इसाईयो ने स्पेन के मुसलमानो पर तरह तरह के ज़ुल्म किये और ख़ुब क़त्ले आम किया और ये फ़रमान सुना दिया के मज़हब बदल इसाई बनो या फिर मुल्क को छोड़ कर चले जाओ. मज़हब न बदलने पर उन्हें नौकरी से हटाने, सामाजिक विलगाव, मुल्क बदर , प्रताड़ना और जान से मारने तक का सिलसिला शुरु हुआ. कई हज़ार मुसलमान क़तल कर दिये गए लाखो की तादाद मे मुसलमानो को तलवार को ज़ोर पर मुसलमान से इसाई बनाया गया......

ईयाइयों के हमले का शिकार सिर्फ़ मुसलमान ही नही हुए बलके मुसलमानो के ज़ेरे हिफ़ाज़त रहने वाले यहुदी भी ईसाई हिंसा का शिकार हुए आख़िर मुसलमानो और यहुदियों ने हिजरत करने को सोची पर जब पुरी दुनिया ने उनकी एक नही सुनी तब......

मुसलमानो और यहुदीयों को स्पेन से इसाईयों मार बाहर निकाल दिया था तब अपने ऊरुज पर मौजुद सलतनत उस्मानीया ने भी स्पेन पर हमला नही किया था, पर हां

सलतनत उस्मानिया के सुलतान बायज़ीद ने स्पेन से भगाए गए यहुदियोँ और मुसलमानो को पुरी इज़्ज़त के साथ अपने सलतनत मेँ रहने के लिए जगह फ़राहम की थी, स्पेन से मुहाजिरोँ को लाने के लिए एडमिरल कमाल रईस के क़ियादत एक पुरा बैहरी बेड़ा स्पेन के साहिल पर भेज दिया था. लाखो की तादाद मे लोगो को वहां से लाया गया और सलतनत उस्मानिया मे रहने के लिए जगह फ़्राहम की गई.......  मुसलमानो के द्वारा स्पेन से ज़िन्दा बचा कर लाए गए यहुदीयों की तादाद 1.5 लाख थी......

सुलतान बायज़ीद का मानना था की अल्लाह ने उसे हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और हज़रत याक़ुब (अ.स.) के क़ौम की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी सौपी है. इस बात का तज़किरा सुलतान बायज़ीद ने यहुदियों को ख़िताब करते हुए किया था.....

🚥 जब मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब ने लिया पुर्तागालियों और बर्मा के बादशाह से मुसलमानो के क़तल का बदला ⚓

बात 1665 की है जब पुर्तागालियों और बर्मा के बादशाह ने मिलकर कुछ मुसलमानो का क़त्ल अराकान में कर दिया था तब महान मुग़ल शहंशाह औरंगज़ेब आलमग़ीर(र.अ) ने इस क़त्ले आम का बदला लेने के लिए बर्मा पर हमला कर दिया था... जिसमे 6,500 सिपाही की एक मज़बुत टुकड़ी और 288 बैहरी जहाज़ो ने हिस्सा लिया था.

आज हज़ारो की तादाद में रोहंग्या मुसलमानो का क़त्ल अराकान (म्यान्मार) में किसा जा रहा है.. सारि दुनिया ख़ामोश है.. और 56 मुसलिम मुमालिक भी :(

जब रोहिंग्याओं पर इतने मज़ालिम के बाद भी मुस्लिम देश बर्मा पर रत्ती भर प्रेशर नहीं डाल पाए और न ही कोई कोशिश कर पाए के कमसेकम रोहिंग्या रेफ्यूजीस के लिए ही मुस्लिम मुल्क अपने दरवाज़े खोल लें. हकीकत ये है कि बंगलादेश में हिन्दू उत्पीडन पर सेक्युलर भारत खुल कर बोलता है मगर भारत में गुजरात जैसे नरसंहार के बाद भी पूरी इस्लामी दुनिया खामोश रहती है. अपने सेकुलरिज्म का ये हाल है कि इंसान घर में क्या खा रहा है उस पर उसका क़त्ल हो जाता है मगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय खामोश रहता है. दर-असल, ये 'उम्मा' या 'इस्लामी दुनिया' वगैरा की बात बिलकुल हवा-हवाई है.

🚥 भारत के मुसलमानो का 100 साल पहले मुसलिम दुनिया पर असर ⚓

डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी 1911-12 मे हुए बालकन युद्ध मे ख़िलाफ़त उस्मानिया के समर्थन मे मेडिकल टीम की नुमाईंदगी की थी चुंके मलेट्री मदद करने पर अंग्रेज़ो ने पाबंदी लगा दी थी, इस लिए डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी ने 25 डॉकटर की टीम बनाई और मर्द नर्स की एक टीम बनाई जिसमे उन्हे साथी की ज़रुरत थी. जसमे काफ़ी तादाद मे तालिब ए इल्म ने इसमे हिससा लिया. इसमे कुछ नौजवान काफ़ी रईस घरानो से तालुक रखते थे और इनमे अधिकतर इंगलैड मे ज़ेर ए तालीम थे. बालकन युद्ध के ख़ात्मे के बाद डॉ मुख़्तार अहमद अंसारीे अपनी मेडिकल टीम के नुमाईंदो के साथ वापस आ जाते हैं.. इस मदद के लिए डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी को "तमग़ा ए उस्मानिया" से नवाज़ा गया था.

हिन्दुस्तान के मुसलमान ख़िलाफ़त उस्मानीया से क़िस क़दर मुहब्बत करते थे इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की जब 1912 मे हिन्दुस्तान के मुसलमान ख़ुद अंग्रेज़ो के ज़ुल्म का शिकार थे तब उन्होने बालकन युद्ध मे उस्मानी तुर्को की मेडिकल मदद के लिए रेड क्रिसेँट सोसाईटी को पहली क़िस्त मे मदद के तौर पर जो रक़म भेजी थी वो 185000 ओटमन लीरा थी इस रक़म को जमा करने के लिए औरतो ने अपने गहने तक बेच डाले थे.

एक सच्ची घटना :- 👌⚓👌

Aligarh Muslim University मे ज़ेर ए तालीम अब्दुर रहमान पेशावरी सट्रेचरर के तौर पर इस टीम मे मुंतख़िब हुए पर वालिद साहेब के मना कर देने के वजह कर वो तुर्की नही जा पा रहे थे इसलिए समुंद्री सफ़र का किराया देने के लिए अपनी किताबें, कपड़े और अपने सारे सामान तक बेच डाले और मुम्बई के रास्ते इस्तांबुल पहुंच जाते हैं.

बालकन युद्ध के ख़ात्मे के बाद डॉ मुख़्तार अहमद अंसारीे अपनी मेडिकल टीम के नुमाईंदो के साथ वापस आ जाते हैं जिसमे मौलाना मोहम्मद अली जौहर भी थे.

पर अब्दुर रहमान पेशावरी तुर्की मे ही मौजुद रहे, पहली जंग ए अज़ीम के दौरान उन्होने गेलिपोली और बेरुत मे अपनी सेवाएं दी.. यहां तक के गेलिपोली की जंग मे अब्दुर रहमान रहमान तीन बार ज़ख़्मी भी हुए... फिर उन्होने रेड क्रीसेंट मुवमेंट के ज़ेर ए क़यादत काम करना शुरु किया, जब उनके घर वालों ने उन्हे वापस घर आने को कहा तो उन्होने इन लफ़ज़ो मे साफ़ इनकार दिया " मै ख़िलाफ़त को ख़तरे मे छोड़ कर अपने वतन वापस नही आ सकता"

ये इत्तेफ़ाक़ देखिये पहली जंग ए अज़ीम के ख़ात्मे के साथ उस्मानीयो का ज़वाल हो जाता है और ख़िलाफ़त का ख़ात्मा हो जाता है और अब्दुर रहमान पेशावरी तुर्की मे ही रह जाते हैं और उन्हे इस्तांबुल की सड़को पर गोली मार कर शहीद कर दिया जाता है :( और उन्हे वहीं दफ़न कर दिया गया.

🌎 🌏🌍

एक दौर था जब मौलाना मोहम्मद अली जौहर की आवाज़ हिन्दुस्तान से निकलती थी और तख़्त ए लंदन से टकराती थी.. मौलाना शौकत अली फ़लस्तीन मे बोलते थे तो पुरी दुनिया को एक पैग़ाम जाता था... मौलाना अब्दुल बारी फ़िरंग-महली लखऩऊ मे सदा देते थे तो पुरी मुसलिम उम्मत तक उनकी आवाज़ जाती थी और यही वजह है के मौलाना मोहम्मद अली जौहर के इंतक़ाल के बाद उन्हे मसजिद ए अक़सा (फ़लस्तीन) के आहते मे दफ़नाया गया और वो पहले ग़ैर और पहले हिन्दुस्तानी जिन्हे क़िबला ए अव्वल के सहन मे दफ़न होने ता शर्फ़ हासिल हुआ... 100 साल पहले भारत के मुसलमानो के कई कारनामे हैं जिसमे एक नुमाया है "तहरीक ए ख़िलाफ़त" .... पर ये सच है तीन टुकड़े (भारत-पाकिस्तान-बंग्लादेश) मे बटने का नुक़सान अब उठाना पड़ रहा है.

🌍 सबसे ख़ास बात ⚓

सबसे ज्यादा बेवकूफ़ वो लोग होते हैं जिनकी तबाही के लिए दुनिया घात लगाए बैठी हो, और वो लोग हों कि आपस मे अपनों ही की जड़ें काटने मे लगे हों ….
ऐसे लोग जल्द तबाह होते हैं, और अपनी तबाही के ज़िम्मेदार खुद होते हैं …

ईरान और सऊदी अरब की अपनी ज़ाती लड़ाई की वजह कर पिछले 40 साल में जितना जानी और माली नुक़सान मुसलमानो को हुआ है उतना पिछले 1400 साल में नही हुआ है , मंगोलों का विध्वंसक आक्रमण हो या फिर स्पेन का ज़वाल सबको मिला भी दिया जाये तो उतना नुक़सान नही हुआ जो इन दोनों मुल्को की वजह कर मुसलमानो को उठाना पड़ रहा है.

आलमे इस्लाम इस वक़्त अपने सबसे नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है , एक एक करके मुस्लिम रियासत का ज़वाल हो रहा है , चाहे वो अफ़ग़ानिस्तान हो या इराक , सीरिया हो या फिर लीबिया , यमन हो या फिर लेबनॉन , हर जगह मुसलमान आपस में एक दूसरे की जड़ें काटने में लगे हैं , कहीं शिया और सुन्नी के नाम पे तो कहीं ज़बान के नाम पर तो कहीं इस दौर के सबसे बढ़े फ़ितना राष्ट्रवाद के नाम पर...?

यह वर्तमान वैश्वीय राजनीतिक परिदृश्य (Global political scenario) में, और विशेषतः कुछ शक्तिशाली पाश्चात्य शक्तियों (Western political players) के ख़तरनाक ‘न्यू वल्र्ड ऑर्डर’ की उन नीतियों के परिप्रेक्ष्य में बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है जिनके तहत वे शक्तियां मुस्लिम जगत के कई देशों में बदअमनी, झगड़े-मारकाट, फ़ितना-फ़साद, रक्तपात, विद्वेष, अराजकता और गृह-युद्ध (Civil war) फैलाकर वहां अपना राजनीतिक, सामरिक, वित्तीय व आर्थिक प्रभुत्व और नव-सामराज्य (Neo-imperialism) स्थापित करना तथा उन देशों के प्राकृतिक संसाधनों को लूटना, लूटते रहना चाहती हैं।

इसके लिए वह अनेक देशों में ‘शिआ – सुन्नी’ टकराव व हिंसा का वातावरण बनाती हैं। आम लोग जो इस टकराव और हिंसा की वास्तविकता से अनजान हैं (और समाचार बनाने, कहानियां गढ़ने, झूठ जनने और इस सारे महा-असत्य को फैलाने का सूचना-तंत्र - Media Machinery - उन्हीं शक्तियों के अधीन होने के कारण) उनके मन-मस्तिष्क में सहज रूप से यह प्रश्न उठता है कि जब शिआ-सुन्नी एक ही धर्म के अनुयायी, एक ही ‘विशालतर मुस्लिम समुदाय’हैं तो इराक़, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब, बहरैन, यमन, पाकिस्तान आदि मुस्लिम देशों में शिओं का शोषण, सुन्नियों के साथ दुर्व्यहार, दोनों का एक-दूसरे की आबादियों, मुहल्लों, मस्जिदों में बम-विस्फोट करना, आदि क्यों है?

इसका उत्तर यह है कि वास्तव में यह सब उन्हीं बाहरी शक्तियों की विघटनकारी ख़ुफ़िया एजेंसियों के करतूत हैं जो मुस्लिम-देशों पर अपने प्रभुत्व, शोषण और लूट का महाएजेंडा (Grand agenda) रखती हैं। पूरा सूचना-तंत्र (Media) या तो उन्हीं का है या उनसे अत्यधिक प्रभावित या परोक्ष रूप से उनके अधीन है, अतः विश्व की आम जनता को न तो हक़ीक़त का पता चल पाता है न उन शक्तियों के करतूतों और अस्ल एजेंडे का।

यह है उस शिआ-सुन्नी विभेद की वास्तविकता जो बहुत ही सतही (Superficial) है; और यह है उस शिआ-सुन्नी विद्वेष की वास्तविकता जो कुछ चुट-पुट घटनाओं व नगण्य अपवादों (Exceptions) को छोड़कर लगभग पूरी तरह नामौजूद (non-existant) है लेकिन इस्लाम के शत्रु और मुस्लिम समुदाय के दुष्चिंतक लोग इसमें अतिशयोक्ति (Exaggeration) करके, इस्लाम की छवि बिगाड़ने तथा मुस्लिम समुदाय के प्रति चरित्र हनन व बदनामी का घोर प्रयास करते रहे हैं। और दूसरे तो दूसरे, स्वयं बहुत से नादान मुसलमान भी इस प्रयास से प्रभावित हो जाते हैं।

नादानी के चलते, अविश्वास व दुर्भावना के गर्म वातावरण का तापमान, साज़िशी लोग जब कुछ और बढ़ाकर कोई चिनगारी भड़का देते हैं तो वह देखते-देखते धधक कर शोला बन जाती है। वर्तमान स्थिति यह है कि मुस्लिम समुदाय इन साज़िशों को समझ कर, सचेत व आत्मसंयमी हो गया है।

शायद 90 फीसद मुसलमान नही जानते की शिया-सुन्नी क्या है, मगर बस दुश्मनी है, जो निभानी है क़ब्र तक, डंडा है जो बजवाना है अपनी पीठ पर क़ब्र में हश्र तक ।
और ठीक यही हाल हिन्दुस्तान में “देवबन्दी” “बरेलवी” और “अहले हदीस”को ले कर है

हिन्दुस्तानी सुन्नी मुसलमान आम तौर से इन तीन फ़िरक़ों में बंटे हुए हैं, और इनके आपस में इख़्तिलाफ़ की वजह से मुसलमानो का दीनी सियासी और समाजी नुकसान कितना हुआ है ये अंदाजा भी नही लगाया जा सकता, इन फिर्को का मानने वाला आम तौर से एक दूसरे का अनजान दुश्मन होता है, चाहे बरेलवी को बरेलवियत के बारे में न पता हो, लेकिन दूसरे अहले हदीस या देवबन्दी मुसलमानसे दुश्मनी के लिए ये काफी है कि वो इन दूसरे फिरक़ो से ताल्लुक़ रखते हैं, ठीक यही हाल मज़कूरा बाकी दोनों फिरके वालों का है।

सीरिया के हालात 2 दृष्टिकोन हैं, पहला धार्मिक, दूसरा राजनैतिक 💐 धार्मिक पर बाद मे पहले राजनैतिक ⚓

असद परिवार 22 फ़रवरी 1971 से सीरिया में सत्ता में आया जब हाफिज अल असद जो बशर अल असद के अब्बा हुज़ूर है, सीरिया के राष्ट्रपति बने जो अहले बैत (इस्लाम) से आते है, इससे पहले मेरी जानकारी के मुताबिक, सन 1922 के बाद हाफिज पहले राष्ट्रपति थे जो सुन्नी (इस्लाम) नहीं थे।

हाफिज अल असद का इंतेक़ाल 10 जून 2000 को हुआ, उसके बाद बशर अल असद सत्ता में तायें, गृह युद्ध के हालात तभी से बनने लगे थे,

2011 आते आते बशर अल असद ने बाहूत सी सरकारी नीतियों में बदलाव कर के सिर्फ शियाओं को ही उसका फायदा पहुंचाना शुरू कर दिया था, जिसकी वजह से सुन्नियों, कुर्दों और यजीदियों को बेहद परेशानियों का सामना करना पड़ा,

उसके बाद 15 मार्च 2011 के दिन कुछ सीरियन नागरिकों (सुन्नी) ने अपने ही सरकार के विरोध में दीवार पे नारे लिख दिए, और अगले ही दिन बसर अल असद की आर्मी ने 15 नागरिकों (सिर्फ सुन्नी) को गिरफ्तार कर लिया, और उन्हें खूब मारा पीटा।

जिसके विरोध में सीरिया के नागरिकों ने शांतिपूर्ण जुलुस निकाला जिसे दबाने के लिए असद की आर्मी ने उनपे हिंसा शुरू कर दी, जिसका नतीजा ये हुआ की, नागरिकों के मनन में दबा हुआ आक्रोश पूरी तरह बहार निकल आया और सीरिया में बेहद हिंसक गृह युद्ध शुरू हो गया।

इसके बाद, मुल्क़ ए शाम (सीरिया) जंग का मैदान बन गया और सभी मौक़ा परास्त देश और आतंकी संघटन अपने अपने तरीके से इस जंग के मैदान में कूद पड़े, अब ज़ियादार देश समाधान की बातें कर रहे हैं, पर कोई भी देश समाधान करने के लिए आगे नहीं आ रहा है.

म्यांमार के बौद्ध और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच की जंग पर  "प्रसन्न प्रभाकर" लिखते हैं ⚓

बुद्ध का धर्म अहिंसा पर आधारित है, अहिंसा से ओतप्रोत। फिर सिंहली बौद्धों ने तमिल हिंदुओं का नरसंहार क्यों किया, क्यों उनके अधिकार कम कर दिए ? म्यांमार के बौद्ध धर्मावलंबियों और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। 
सवाल धर्म या मजहब का है ही नहीं। सवाल है अंधराष्ट्रवाद का , जो शांति का संदेश देते हुए धर्म को भी आतंक का पर्याय बना देता है। क्या सिंहली तमिलों के साथ नहीं रह सकते थे ? क्या बर्मीज लोग ना के बराबर रोहिंग्या के साथ बसर नहीं कर सकते ? क्या यह स्पष्ट नहीं होता कि राष्ट्रवाद स्वयं एक स्वयंभू पंथ है ?

एक पंथ की क्या विशेषताएं हो सकती हैं -
एक ईश्वर/ अनीश्वर/ किताब / महापुरुष, भाव हों,
उसको माननेवालों की पहचान हो,
उसको न माननेवालों को जमात से बाहर/ काफिर/ द्रोही माना जाये।
क्या यह वाद इसपर सटीक नहीं बैठता ?
आधुनिक सभ्यता के सार्वभौमिक होने के पहले ऐसा नहीं था। इस आधुनिक सभ्यता ने ही सभी क्षेत्रों को राष्ट्र के रूप में डॉक्यूमेंट किया। उनकी सीमायें बनाईं । फिर हर देश के स्वातंत्र्य संघर्ष ने इस भाव को अप्रत्यक्ष रूप से पुष्ट ही किया। यह एक बड़ी हेजेमनी है जिसमे आज हम सब जीते हैं और जिससे पार पाने तक को विद्रोही करार दिया जाता है।
सत्ता में आने पर कोई भी मजहब ऐसा ही हो जाता है क्योंकि सत्ता की प्रवृति ही हिंसा है।

(श्रीलंका में लिट्टे का मिलिटेंट संघर्ष हुआ। नतीजा ?
रोहिंग्या भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं । नतीजा क्या होगा ?
यह बात समझने की है कि यह संघर्ष मजहबों के बीच का नहीं, बल्कि वर्तमान वर्ल्ड आर्डर के सबसे बड़े मजहब राष्ट्रवाद के बीच का है। मिलिटेंट संघर्ष करनेवाले अपने ही केस को कमजोर कर रहे हैं। )

न्यू वर्ल्ड आर्डर का पुरोधा और न्यायाधीश संयुक्त राष्ट्र है जो वकील की भूमिका निभाते हुए किसी भी केस का समाधान नही  करता।
समाधान कोई ढूँढना चाहता भी नहीं क्योंकि नेतृत्व ऐसे हाथों में चला जाता है जो स्वयं समस्या का हिस्सा बनकर   समस्या को दूर करने की बातें करता है।
इस वर्ल्ड आर्डर का जाना ही एकमात्र समाधान है। इसमें इतिहासबोध सहायक सिद्ध हो सकता है यह दिखाने में कि जब 1800 के पहले डॉक्यूमेंटेड राष्ट्र और उनकी डॉक्यूमेंटेड डेमोग्राफी मौजूद नहीं थी, तब भी लोग इस दुनिया में रहा करते थे।
एक बात और, हैपोथेटिकल बातें एक समय विशेष के दौरान ही हैपोथेटिकल लगती हैं ।

🌍 कौन किसके साथ ⚓

1 सरकार, 2 समर्थक देश, 9 बिरोधी देश (लगभग), और 5 लडके संघटन।

जी ये आज की हक़ीक़त है सीरिया की, जो दुनिया में हुए अभी तक के सबसे भयानक गृह युद्ध से गुज़र रहा है, जिसमे अभी तक 5 लाख लोग से ज़ियादा मारे जा चुके हैं।

2 समर्थक देश:
ईरान और रूस।

9 बिरोधी देश:
अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, तुर्की, अरब, जॉर्डन, क़तर, बहरीन, मोरक्को।

2 समर्थक लडके संघठन:
सीरियन सरकारी आर्मी, हिज़्बुल्लाह।

5 विरोधी लडके संघटन:
सीरियन रेबल्स, अल-नुसरा फ्रंट, इस्लामिक ग्रुप, फ्री सीरियन आर्मी और ISIS।

सबसे पहले ये समझिये कौन किसे सहायता पहुँचा रहा है, हथियार दे कर।

असद सरकार:- ईरान और रूस से हथियार ले रहा है,
ये ISIS, सीरियन रेबल्स, फ्री सीरियन आर्मी, अल-नुसरः और इस्लामिक ग्रुप से लड़ रहा है,

हिबजुल्लाह:- ईरान और असद सरकार से हथियार ले रहा है,
ये ISIS और अल-नुसरः से लड़ रहा है।

फ्री सीरियन आर्मी:- तुर्की, सऊदी अरब और अमेरिका से हथियार ले रहा है,
ये असद सरकार और सीरियन रेबल्स से लड़ रहा है,

सीरियन रेबल्स:- अमेरिका से हथियार ले रहा है,
ये ISIS, असद सरकार और हिज़्बुल्लाह से लड़ रहा है,

अल-नुसरः :- फ्री सीरियन आर्मी और इस्लामिक ग्रुप से हथियार ले रहा है,
इसका मतलब है, अल-नुसरः को तुर्की, अरब और अमेरिका छुप कर सहायता कर रहा है, जो ISIS, असद सरकार और हिबजुल्लाह से लड़ रहा है।

ISIS को हथियार कोई नहीं दे रहा है, पर वो सभी से लड़ रहा है, ये समझने वाली बात है,

असल में यहाँ लड़ाई, सुन्नी, शिया और वहाबी के बीच है, जिसका फायदा पश्चिम के देश उठा रहे हैं,

ज़ियादारत खरी देशों में अमरीका का दबदबा है, जिस वजह से रूस सीरिया की तरफ नज़रे जमाये हुआ है, इसके अलका भी वजहें हैं, पर ये अहम है।।

लड़ाई सिर्फ फ़ौज से  नहीं होती है डिप्लोमेसी का भी बड़ा हाथ होता है बल्कि असली लड़ाई डिप्लोमेसी के लेवल पर ही होती है डिप्लोमेटिक लेवल पर तुर्की फंसा हुआ है अभी तुर्की बंटने से बच जाये यही बड़ी बात होगी उसका कूर्द इलाक़ा उसके पास रह जाए यही बड़ी बात होगी
खिलाफत ए उस्मानिया के दौर में बाल्कन की पहली जंग में तुर्की के खिलाफ जंग लड़ने वालों का साथ रूस ने दिया था जिसमे तुर्की हार गया था और बहुत सारे इलाके से हाथ धोना पड़  गया था अगर तुर्की खुल कर आगे आएगा तो रूस से जंग लड़नी होगी और फिर से उसे हारना होगा क्योंकि सभी लोग उसके विरोधी होंगे सभी मसले की जड़ यही है देश के अंदर भी कमालिस्ट , गुलेनिस्ट इस मौक़े के इंतज़ार में हैं की कब एरदोगान को उखाड़ कर फ़ेंक दिया जाए

REFERENCE : https://en.wikipedia.org/wiki/Military_history_of_Myanmar

#Mayanmar #Rohingya #Burma #SupportRohingya #StopKillingRohingya

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Bayezid_II

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Kemal_Reis

https://en.m.wikipedia.org/wiki/History_of_the_Jews_in_the_Ottoman_Empire

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Sephardic_Jews

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Alhambra_Decree

https://en.m.wikipedia.org/wiki/History_of_the_Jews_in_Turkey

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Turkish_military_intervention_in_Syria

#Allepo
#Turkey
#Ottoman
#IndianMuslim 
#Ottomans

https://balkanonline.net/threads/ottoman-imperial-archives-bilderthread.5/

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Abdur_Rehman_Peshawri

http://aa.com.tr/en/life/indian-muslim-hero-in-turkeys-liberation-war/161608

http://www.oxfordscholarship.com/view/10.1093/acprof:oso/9780198099574.001.0001/acprof-9780198099574

https://en.m.wikipedia.org/wiki/First_Balkan_War

https://en.m.wikipedia.org/wiki/Second_Balkan_War

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