पुराण और मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)
सत्य हमेशा स्पष्ट होता है, उसके लिए लिए किसी तरह की दलील की ज़रुरत नहीं. यह बात और है कि हम उसे समझ न पायें या कुछ लोग हमें इससे दूर रखने का कुप्रचार करें. यह बात अब छिपी नहीं रही कि वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इस श्रृष्टि के अंतिम संदेष्ठा के आने की भविष्यवाणी की गयी है. मानवतावादी लेखकों और विद्वानों ने ऐसे अकाट्य साक्ष्य पेश करें हैं कि जिससे सत्य सामने पेश हो गया है और खुलकर हमारे सामने आ गया है. इन सच्चाईयों के मद्देनज़र मानवमात्र को एक सूत्र में पिरोने का जो कार्य हो सकता है वह वाकई अदभुत होगा. मानव एकता और अखंडता और वसुधैव कुटुम्बकम को मज़बूत करने के लिए सार्थक प्रयास हो सकते हैं. यह वक़्त की नज़ाक़त भी है. वैमनष्यता और साम्प्रदायिकता के इस दौर में जहाँ लोग अति-कट्टर होकर सत्य सुनने को ही राज़ी नहीं बल्कि सत्य-गवेशियों को प्रताड़ित और बॉयकाट किया जाता है. वैमनष्यता और साम्प्रदायिकता के इस आत्मघाती दौर में ये सच्चाइयां मील का पत्थर साबित हो सकती है. भाई-भाई को गले मिला सकती है और एक ऐसे समाज की स्थापना हो जहाँ हिंसा, शोषण, दमन और नफ़रत लेशमात्र भी न हो.
हिन्दू धर्म ग्रन्थ और हज़रत मुहम्मद (स.) Hazrat Muhammad (saw) in Hindu Scriptures की इस नशिस्त (एपिसोड) में ज़िक्र करेंगे कि "हज़रत मुहम्मद (स.) का ज़िक्र पुराणों में"
पुराणों में नराशंश या मुहम्मद (स.) के आने की भविष्यवाणी कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है. यही नहीं वेदों में भी भविष्यवाणी का ज़िक्र है (जिसे मैं इस पोस्ट के बाद लिखूंगा). वेदों और पुराणों दोनों में ही हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) का कार्यस्थल रेगिस्तान में होने का उल्लेख आया है. भविष्यपुराण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 'एक दुसरे देश में आचार्य अपने मित्रों के साथ आयेंगे, उनका नाम महामद होगा, वे रेगिस्तान क्षेत्र में आयेंगे.
इस अध्याय के श्लोक ६, ७ व ८ भी मुहम्मद साहब (स.) के विषय में है. पैग़म्बरे-इस्लाम (स.) के जन्म स्थान सहित अन्य साम्यतायें कल्कि अवतार से भी मिलती हैं, जिसका वर्णन कल्कि पुराण में है. इसकी चर्चा बाद में की जायेगी.
यहाँ यह उल्लेख कर देना महती आवश्यक है कि भविष्यपुराण में कई ईशदुतों (नबियों) की जीवन गाथा है. इस्लाम पर भी विस्तृत अध्याय है. इस पुराण में एकदम सटीक तौर पर मुहम्मद (स.) के बारे में बातें आयीं हैं. जिसे आप स्वयं भी पढ़ कर समझ सकते हैं. इसमें जहाँ महामद शब्द से मुहम्मद (स.) की निकटता है वहीँ पैग़म्बरे-इस्लाम (स.) की पहचान की अन्य सभी बातें भी स्पष्ट रूप से बिलकुल सत्य उतरती हैं. इसमें ज़रा भी व्याख्या की ज़रुरत नहीं है.
भविष्यपुराण में कहा गया है,
लिंग्च्छेदी शिखाहीन: श्म्श्रुधारी स दूषक:
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जानो मम् 25
विना कौलं च पश्वस्तेशाम भक्ष्या माता मम्
मुस्लेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति 26
तस्मान्मुसल्वन्तो हि जातयो धर्म दुषकाह
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति ममा कृतः 27
भविष्य पुराण, पर्व ३, खंड ३, अध्याय १, श्लोक 25, 26, 27
इन श्लोकों का भावार्थ इस प्रकार है:
"हमारे लोगों का खतना होगा, वे शिखाहीन होंगे, वे दाढ़ी रखेंगे, उचे स्वर में आलाप करेंगे (अर्थात अज़ान), शाकाहारी-मांसाहारी दोनों होंगे, किन्तु उनके लिए मन्त्र से पवित्र किये हुए बिना कोई भी पशु भक्ष्य योग्य नहीं होगा (अर्थात वे हलाल मांस खायेंगे). इस प्रकार हमारे मत के अनुसार हमारे अनुनायीयों का मुस्लिम संस्कार होगा. उन्हीं से निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशाच धर्म का अंत होगा."
भविष्यपुराण की उक्त भविष्यवाणी इतनी स्पष्ट है कि हर चीज़ स्पष्ट हो जाती है और हम देखते हैं कि यह मुहम्मद (स.) पर खरी उतरती है. अतः आप (स.) की अंतिम ऋषि के रूप में पहचान स्पष्ट हो जाती है. ये तो सभी जानते है कि वेद और पुराण के ये ग्रन्थ कुर-आन के अवतरित होने के बहुत पहले के है.
संग्राम पुराण की पूर्व सूचना:
संग्राम पुराण भी भविष्य पुराण की ही तरह एक महान पुराण है और इसमें भी ईश्वर के अंतिम ईशदूत और पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के आगमन की पूर्व सुचना मिलती है. पंडित धर्मवीर उपाध्याय की प्रसिद्द पुस्तक "अंतिम ईशदूत" में लिखा है; "काग्भुसुन्दी और गरुण दोनों राम की सेवा में दीर्घ अवधि तक रहे और वे उनके उपदेशों मात्र सुनते ही नहीं बल्कि लोगों को सुनाते भी थे. इन उपदेशों की चर्चा तुलसीदास ने "संग्राम-पुराण" के अपने अनुवाद में की है. जिसमें शंकर जी ने अपने पुत्र षन्मुख को आने वाले धर्म और अवतार (ईशदूत) के विषय में पूर्व सुचना दी. अनुवाद इस प्रकार है।
यहाँ न पक्षपात कछु राखहु
वेद, पुराण संत मत भाखहूँ
संवत विक्रम दोउ अनंगा
महाकोक नस चतुर्पतंगा
राजनीती भव प्रीति दिखावै
आपन मत सबका समझावै
सूरन चतुसुदर सत्चारी
तिनको वंश भयो अतिभारी
तब तक सुन्दर मद्दिकोया
बिना महामद पार न होया
तबसे मानहु जन्तु भिखारी
समरथ नाम एही व्रतधारी
हर सुन्दर निर्माण न होई
तुलसी वचन सत्य सच होई
(संग्राम पुराण, स्कन्ध १२, काण्ड ६, पद्यानुवाद, गोस्वामी तुलसीदास)
पंडित धर्मवीर उपाध्याय जी ने इसका भावार्थ इस प्रकार किया है:
(तुलसीदास जी कहते हैं) मैंने यहाँ किसी प्रकार का पक्षपात करते हुए संतो, वेदों, पुरानों के मत को कहा है. सातवीं विक्रमी सदी में चारो सूर्यों के प्रकाश के साथ वह पैदा होगा. राज करने में जैसी परिस्थियाँ हों, प्रेम से या सख्ती से, वह अपना मत सभी को समझा सकेगा. उसके साथ चार देवता (चार प्रमुख सहयोगी) होंगे, जिनके सहायत से उसके अनुनायीयों की संख्या काफी हो जायेगी. जब तक सुन्दर वाणी (कुर-आन) धरती पर रहेगी, उसके और महामद (हज़रत मुहम्मद स.) के बिना मुक्ति नहीं मिलेगी. इंसान, भिखारी, कीडे-मकोडे और जानवर इस व्रतधारी (रोज़ा रखने वाले) का नाम लेते ही ईश्वर के भक्त हो जायेंगे. फिर कोई उसकी तरह का पैदा नहीं होगा (अर्थात कोई रसूल न आएगा), तुलसी दास ऐसा कहते हैं कि उनका वचन सत्य सिद्ध होगा."
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